गैल्वेनिक सेल
वह युक्ति जिसके द्वारा रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। उसे गैल्वेनिक सेल (galvanic cell in Hindi) कहते हैं। इसे वोल्टीय सेल (voltaic cell) भी कहा जाता है। इन सेलों में ऑक्सीकरण तथा अपचयन अभिक्रिया अलग-अलग पात्रों में होती है। जिन्हें अर्ध-सेल कहते हैं। एक गैल्वेनिक सेल स्वयं में संपन्न एक रेडॉक्स अभिक्रिया के फलस्वरुप विद्युत धारा उत्पन्न करता है।
गैल्वेनिक सेल की विशेषताएं
- इस सेल में दो भिन्न प्रकार के इलेक्ट्रोड होते हैं जिन्हें अर्ध-सेल कहते हैं।
- इस सेल में एक इलेक्ट्रोड पर ऑक्सीकरण क्रिया तथा दूसरे इलेक्ट्रोड पर अपचयन क्रिया होती है।
- सेल के जिस इलेक्ट्रोड पर ऑक्सीकरण होता है उसे एनोड तथा जिस इलेक्ट्रॉन पर अपचयन होता है उसे कैथोड कहते हैं।
गैल्वेनिक सेल की क्रियाविधि
गैल्वेनिक सेल में दो धात्विक चालक होते हैं जिन्हें इलेक्ट्रोड कहा जाता है। यह इलेक्ट्रोड एक या अलग-अलग विद्युत अपघट्य के विलयन में डूबे रहते हैं इन इलेक्ट्रोड को चालक तार द्वारा जोड़ा जाता है तब परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है।
गैल्वेनिक सेल में एक विपरीत बाह्य विभव लगाया जाए एवं इसे धीरे-धीरे बढ़ाया जाए तो अभिक्रिया तब तक होती रहती है जब तक के बाह्य विभव का मान 1.1 वोल्ट नहीं हो जाए। इस अवस्था में अभिक्रिया पूर्णतः रुक जाती है तथा सेल में विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है।
विद्युत अपघटनी सेल तथा गैल्वेनिक सेल में अंतर
- विद्युत अपघटनी सेल में विद्युत ऊर्ज, रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है। जबकि गैल्वेनिक सेल में रासायनिक ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में परिवर्तन होता है।
- विद्युत अपघटनी सेल में लवण सेतु या सरन्ध्र पात्र प्रयुक्त नहीं होता है। जबकि गैल्वेनिक सेल में लवण सेतु या सरन्ध्र पात्र प्रयुक्त होता है।
- विद्युत अपघटनी सेल में एनोड धन ध्रुव तथा कैथोड ऋण ध्रुव होता है। जबकि गैल्वेनिक सेल में एनोड ऋण ध्रुव तथा कैथोड धन ध्रुव होता है।
- विद्युत अपघटनी सेल में एक ही पात्र में एक ही विलयन में दोनों इलेक्ट्रॉन डूबे रहते हैं। जबकि गैल्वेनिक सेल में दोनों इलेक्ट्रॉन भिन्न-भिन्न पात्रों में भिन्न-भिन्न विलयनों में डूबे रहते हैं।