जब एक धातु को किसी विशिष्ट वातावरण में रखा जाता है तो वह वातावरण से क्रिया करके धातु की सतह को धातु ऑक्साइड या अन्य लवणों द्वारा ढक लेते हैं। इस प्रक्रिया को संक्षारण कहा जाता है। आइये संक्षारण की क्रिया को पर अध्ययन करते हैं।
संक्षारण
जब धातुएं वातावरण में उपस्थित धूल, नमी तथा अन्य गैसों के संपर्क में आती है तो उनकी सतह खराब होने लगती है। धातुओं की सतह का इस प्रकार धीरे-धीरे नष्ट होने की प्रक्रिया को संक्षारण (Corrosion in Hindi) कहते हैं।
संक्षारण की प्रक्रिया में अवांछनीय यौगिक जैसे – ऑक्साइड, कार्बोनेट तथा सल्फाइड आदि बनने लगते हैं जिसके फलस्वरुप धातुओं का क्षरण होने लगता है।
संक्षारण के प्रभाव से अनेक धातुएं अपनी चमक को देती हैं तथा कुछ धातुओं की शक्ति कम हो जाती है और वह धातु दुर्बल तथा भंगुर हो जाती हैं।
संक्षारण के उदाहरण
- लोहे पर जंग लगना।
- चांदी की चमक का कम हो जाना अर्थात् काला पड़ जाना।
- तांबा तथा पीतल से बनी वस्तुओं पर हरी परत का हो जाना।
- लेड तथा स्टेनलेस स्टील का अपना संरचना को देना।
संक्षारण के प्रकार
धातुओं का संक्षारण वातावरण पर निर्भर करता है यह दो प्रकार का होता है।
1. वायुमण्डलीय संक्षारण
2. विद्युत-रासायनिक संक्षारण (Immersed Corrosion)
1. वायुमण्डलीय संक्षारण
धातुओं की सतह वायुमण्डलीय गैसों जैसे – ऑक्सीजन, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड आदि के संपर्क में आकर रासायनिक अभिक्रिया करने लगती है। जिस कारण धात्विक पृष्ठ पर ऑक्साइड, सल्फाइड तथा कार्बोनेट की परत बन जाती है। जिसकी वजह से धातुओं का धीरे-धीरे क्षय होने लगता है।
2. विद्युत-रासायनिक संक्षारण
धातु की सतह का नम वायु जल या किसी अन्य द्रव के संपर्क में आकर विद्युत-रासायनिक सेल बन जाता है। जिसके फलस्वरूप विद्युत-रासायनिक अभिक्रिया होने लगती है। जिससे धातु का क्षय होने लगता है। इस प्रकार के संक्षारण को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
(a) रासायनिक संक्षारण
(b) भूमिगत संक्षारण
(c) जलगत संक्षारण
संक्षारण को प्रभावित करने वाले कारक
- धातुओं की क्रियाशीलता :- जो धातु अधिक क्रियाशील होती है उसका संक्षारण कम क्रियाशील वाली धातुओं की तुलना में अधिक होता है। जैसे लोहा अधिक क्रियाशील है जबकि चांदी कम क्रियाशील धातु है इसलिए ही लोहे का संक्षारण, चांदी की अपेक्षा अधिक होता है।
- आर्द्रता :- जब वायु में आर्द्रता अधिक होती है तब संक्षारण की दर अधिक तेजी से होने लगती है। जैसे वर्ष के दिनों में लोहे पर जंग तेजी से लग जाती है।
- विद्युत अपघट्य की उपस्थिति :- विद्युत अपघट्य की उपस्थिति से संक्षारण की दर में वृद्धि होती है। जैसे लोहे का संक्षारण आसुत जल की तुलना में समुद्री जल में अधिक होता है।
- धातुओं की शुद्धता :- यदि धातु में अशुद्धियों की मात्रा अधिक होती है तो उसके संक्षारण की दर भी शुद्ध धातुओं की अपेक्षा अधिक हो जाती है।
संक्षारण की क्रियाविधि
संक्षारण की क्रियाविधि की व्याख्या करने के लिए निम्न सिद्धांत है।
1. अम्ल सिद्धांत
2. प्रत्यक्ष रासायनिक सिद्धांत
3. विद्युत रासायनिक सिद्धांत
इन सिद्धांतों में विद्युत रासायनिक सिद्धांत को सर्वाधिक मान्यता दी गई है। इस सिद्धांत के अनुसार, धातु की सतह पर विभिन्न छोटे-छोटे विद्युत रासायनिक सेल बन जाते हैं। जिनसे रेडॉक्स अभिक्रियाएं प्रारंभ हो जाती हैं जिसके फलस्वरुप धातु का धीरे-धीरे क्षय होने लगता है। इस क्रिया को संक्षारण कहते हैं।
लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि
लोहे पर जंग लगना एक विद्युत रासायनिक अभिक्रिया है जो निम्न प्रकार से है।
एनोड पर 2Fe (s) → 2Fe2+ + 4e–
कैथोड पर O2 (g) + 4H+ (aq) + 4e– → 2H2O (ℓ)
संपूर्ण सेल अभिक्रिया निम्न प्रकार से है।
2Fe (s) + O2 (g) + 4H+ (aq) → 2Fe2+ (aq) + 2H2O (ℓ)
2Fe2+ + ½O2 + 2H2O → Fe2O3 + 4H+
Fe2O3 + xH2O → Fe2O3 · xH2O
रासायनिक रूप से जंग जलयोजित फेरिक ऑक्साइड (Fe2O3 · xH2O) है।
संक्षारण को रोकने के उपाय
- धातुओं के पृष्ठ पर पेंट, वार्निश तथा एनेमल की पतली परत धातुओं को वायु तथा नमी से दूर रखती है।
- धातुओं की सतह पर तेल या ग्रीस के लेपन द्वारा जंग लगने से रोका जा सकता है।
- मिश्र धातुओं के प्रयोग द्वारा जंग के प्रभाव को रोका जा सकता है।
- गैल्वेनीकरण विधि द्वारा धातुओं को जंग से सुरक्षित रखा जा सकता है।
- विद्युत लेपन द्वारा आयरन के पृष्ठ पर निकिल, क्रोमियम तथा कॉपर आदि का लेपन कर दिया जाता है। जिससे धातु जंग से बच जाती है।